भरण-पोषण के संकट में ढुलका परिवार, मखऊपुर निवासी किलकोटी ने की स्थायी स्थान की मांग
चमड़ा-हड्डी के कार्य पर आपत्ति से बंद हुआ रोजगार, परिवार संग एसडीएम कार्यालय के सामने बैठा पीड़ित
अमन केसरवानी टुडे इंडिया प्लस कौशांबी ( 7007468543)
चायल (कौशांबी)।
चायल तहसील क्षेत्र के मखऊपुर गांव निवासी किलकोटी पुत्र मधवां बीते कई वर्षों से पुस्तैनी परंपरा के तहत मृत पशुओं से चमड़ा एवं हड्डी निकालने का कार्य कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। लेकिन अब स्थानीय लोगों की आपत्तियों के चलते उसका यह काम पूरी तरह बंद हो गया है, जिससे उसके सामने रोजी-रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
शुक्रवार को किलकोटी अपने परिवार के साथ चायल उपजिलाधिकारी कार्यालय के सामने धरने पर बैठ गया और प्रशासन से स्थायी भंडारण स्थल उपलब्ध कराने की मांग की। उसका कहना है कि यदि कोई सरकारी या पंचायत स्तर पर भंडारण या कार्यस्थल उपलब्ध करा दिया जाए तो वह दोबारा अपना काम शुरू कर सकेगा और परिवार को दो वक्त की रोटी जुटा पाएगा।
किलकोटी का कहना है कि उसके पास न तो जमीन है और न ही कोई अन्य आय का साधन। चमड़ा और हड्डी निकालकर विक्रय करना ही एकमात्र जरिया था जिससे वह अपने बच्चों को पाल रहा था। लेकिन गांव के कुछ लोगों ने इसके खिलाफ आपत्ति जताकर काम रुकवा दिया। अब न तो सरकार की कोई सहायता मिल रही है और न ही गांव में दोबारा काम करने की अनुमति।
प्रशासन से लगाई गुहार
किलकोटी ने बताया कि उसने कई बार अधिकारियों से मिलकर अपनी परेशानी बताई, लेकिन आज तक किसी ने स्थायी समाधान नहीं किया। अंततः शुक्रवार को मजबूरीवश वह अपने छोटे-छोटे बच्चों और पत्नी के साथ चायल एसडीएम कार्यालय के सामने बैठा और आवाज़ उठाई कि सरकार उसे काम करने के लिए एक सुरक्षित और स्वीकृत स्थान प्रदान करे।
ग्रामीणों की आपत्ति और प्रशासन की चुप्पी
वहीं, गांव के कुछ लोगों का कहना है कि इस कार्य से दुर्गंध फैलती है और स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है, इसलिए उन्होंने आपत्ति की थी। मगर सवाल यह भी उठता है कि यदि परंपरागत कार्य बंद करवा दिया गया, तो फिर सरकार पीड़ित परिवार के लिए वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं कर रही?
अब आगे क्या?
पीड़ित किलकोटी ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उसे उचित स्थान और काम की अनुमति नहीं दी गई, तो वह परिवार सहित आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर होगा।
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